वाराणसी कचहरी में हुई इस घटना ने न केवल पुलिस और अधिवक्ताओं के बीच तनाव बढ़ाया है, बल्कि शहर में कानून व्यवस्था और न्यायिक कार्यों में लगे पुलिसकर्मियों की सुरक्षा को लेकर व्यापक चिंता भी पैदा कर दी है। घटना के बाद घायल दरोगा मिथिलेश प्रजापति ने तुरंत मदद के लिए फोन किया, लेकिन लगभग आधे घंटे तक कोई सहायता नहीं मिली, जिससे सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े हो गए।परिजनों ने कहा कि वर्दी पहनकर न्यायिक कार्यों में लगे पुलिसकर्मी अक्सर जोखिम में रहते हैं, और ऐसे हमले से उनकी नौकरी पर भी खतरा पैदा हो जाता है। उन्होंने पुलिस और प्रशासन से आग्रह किया कि ऐसे मामलों में त्वरित और प्रभावी कदम उठाए जाएं ताकि किसी भी पुलिसकर्मी की जान को खतरा न हो।घायल दरोगा मिथिलेश के परिजन पुलिस कमिश्नर कार्यालय के बाहर धरने पर बैठ गए और आरोपियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की।
परिजनों ने पुलिसकर्मियों की सुरक्षा पर गंभीर चिंता जताते हुए कहा, 'अगर आज मेरे भाई के साथ यह हुआ, तो कल किसी और के साथ क्या होगासेंट्रल बार और बनारस बार की 11 सदस्यीय कमेटी इस मामले की निगरानी कर रही है। यह कमेटी पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों के साथ बैठक कर मामले की पारदर्शिता सुनिश्चित करेगी और यह ध्यान रखेगी कि मुकदमे में शामिल अधिवक्ताओं पर किसी प्रकार का उत्पीड़न न हो।घायल दरोगा मिथिलेश को बीएचयू ट्रॉमा सेंटर से डिस्चार्ज कर दिया गया है, लेकिन उन्हें सिर और पेट की चोट के चलते पूर्ण आराम की सलाह दी गई है। कचहरी परिसर में सुरक्षा व्यवस्था को कड़ा कर दिया गया है और आरआरएफ समेत भारी पुलिस फोर्स तैनात की गई है।विशेषज्ञों का कहना है कि न्यायिक कार्यों में लगे पुलिसकर्मियों की सुरक्षा के लिए सख्त नियमों और आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करना जरूरी है। इस घटना ने एक बार फिर सवाल उठाया है कि क्या वास्तव में पुलिसकर्मी सुरक्षित माहौल में न्यायिक कार्य कर पा रहे हैं। मामले की जांच कमेटी की निगरानी में जारी है और सभी की निगाहें कार्रवाई की प्रक्रिया पर टिकी हुई हैं।